कल युँ ही अनजान रास्ते पर
चल पड़ी,
थोड़ी दूर जाकर देखा तो थी गौमाता खड़ी,
लाचारी से हिला रही थी गर्दन लगा कर रही कुछ वार्तालाप,
पास जाकर
सुना तो वो कर रही थी धरती माँ से बात I
लाल मेरा रुष्ट हुआ , नहीं रोका जाते देख
कसाई के हाथ
अनदेखा कर दिया देख मेरी कटती आँत ,
बहा दिया रक्त सारा,
उल्टा मुझे टांग
देखता रहा वो पल - पल टूटती मेरी साँस
कर दिया अनसुना मेरे लाल ने , बेबस मेरा आशीर्वाद I
जब निकाल दिया घर से मुझे , किया मैंने
गुजारा,
सड़कों की गंदगी और कचरा खाकर दूध दिया सारा,
पर फिर भी मेरा लाल मुझसे रुष्ट है,
पर फिर भी मेरा लाल मुझसे कुंठ है I
नहीं तो, नहीं
बिकने देता वो मुझे कसाई के हाथ,
खौलता उसका खून देख मेरी कटती आँत,
मिल जाते उसके आँसू , मेरे बहते रक्त में,
फिर से
जुड़ जाती मेरी टूटती सांस,
गर रुष्ट नहीं होता मुझसे मेरा लाल I
मत रो सखी, इतने में धरती माँ
बोल,
तू सब्र
रख तेरा हर लाल बेकार नहीं,
वो बैठा अभी औरो
सहारे, बेबस
तेरा आशीर्वाद नहीं,
लाल भटक गए हमारे,
डरने की कोई बात नहीं I
आ मिलकर समझायें,
इसे माँ बिन सृष्टि
हाल
मैं लेती हु
थोड़ी करवट, तु ले ले
अपना आशीर्वाद
गौमाता उठ हुई खड़ी,
करवट ली धरती माँ ने
I
कोहराम मचा , जब भुकंप
आया सारे जहां में,
फैली महामारी, गौमाता
का दूध, मूत्र
मात्र उपाय,
पर ना दिखी गौमाता,
लाल सारे ढूंढ आये !!
सुबह हो गई, माँ बोली, मैने झट से आँखे खोली
था वो मंजर सिर्फ एक सपना, नहीं था कोहराम कही
थे गोमाता के पदचाप,
बेला थी गोधूलि I
सोचो
माँ बिन क्या अस्तित्व है? माँ बिन क्या पुत्रत्व है?
माँ बिन जीवन रोगी है, माँ बिन ना खुशियाँ
हैं
माँ बिन ना सृजन है , माँ बिन ना जीवन है I
सोचो सोचो
क्या हो गर !!!!!! माँ ने समझाने की ठानी?